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गर्मियों में ठंड का लुत्फ़ उठाने के लिए पर्यटक, हिमाचल की ओर कर रहे हैं रुख

दिल्ली जैसे शहरों में तापमान 40 डिग्री से ऊपर है और हमारे हिमाचल में कईं जगह अभी बारिश, ओले और यहाँ तक की बर्फ भी गिर रही है। लोग हिमाचल की ओर रूख कर रहे हैं इस गर्मी से निजात पाने के लिए।


सभी पर्यटकों से अनुरोध है हमारे प्रदेश की सुंदरता को बनाए रखने में मदद करें और कूड़ा इधर उधर न फेंकें। जगह-जगह बोतलें, चिप्स के पैकेट आदि फेंक दिए जाते हैं। कूड़े को किसी डस्टबिन में डालें या फिर अपने बैग में डालें और उचित स्थान पर फेंकें। गाड़ी ध्यान से चलाए। आप यहाँ घूमने आते हो मस्ती करो लेकिन अपनी जान की बाजी लगाकर नहीं। ओवर स्पीड और ओवर टेकिंग के चक्कर में कितने हादसे होते हैं। ये आपके दिल्ली, चंडीगढ़ जैसी सीधी सड़कें नहीं है। ये पहाड़ों की सर्पीली सड़कें हैं। कृपया पर्यटकों से यह भी अनुरोध है कि नदियों के पानी में न जाएं क्योंकि कभी भी पानी बढ सकता है और कोई भी अनहोनी हो सकती है। सबको हैदराबाद से आए छात्रों केसाथ हुई दुर्घटना याद ही होगी।  जगह जगह गाड़ी रोककर या हर कहीं से भी गाड़ी निकालने की कोशिश न करें। इससे सड़कों पर जो जाम लगता है उससे आप लोगों को ही परेशानी होती है और साथ ही स्थानीय लोग भी प्रभावित होते हैं।


स्थानीय लोग भी पर्यटकों का मेहमान की तरह स्वागत करें। उनको अनजान समझकर लूटें ना ताकि हिमाचली लोगों की जो भोली-भाली, सीधी और ईमानदार छवि बनी है वो बरकरार रहे। उनको अपनेपन का एहसास दिलाएं ताकि लोग बार बार आएं और उनको कुछ तो फर्क लगना चाहिए कि वो हिमाचल में हैं। इससे ज्यादा से ज्यादा लोग यहाँ आएंगे जो हमारे प्रदेश की प्रगति और उन्नति के लिए एक कदम है और इसमें सब भागीदार बनें। अगर आप मेरी बातों से सहमत हैं तो कृपया शेयर जरूर करें।
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रामायण काल के सम्बंध से जुड़ा है कसौली का प्रसिद्ध पर्यटक स्थल मंकी पॉइंट

मंकी पॉइंट पर पड़े थे हनुमान जी के पांव


 हिमाचल  की धरा पर बने देवी देवताओं के हजारों मंदिर इस तथ्य को प्रतिपादित करते हैं कि वह हिमाचल की धरती शुरू से ही देवी देवताओं के वास का स्थान रही है। तभी हिमाचल को देवभूमि भी कहा जाता है यहां आने वाले लोग खुद को कुदरत की गोद में होने का आनंद लेते हैं प्रदेश के प्रसिद्ध शक्तिपीठ में माता श्री नैना देवी ,श्री ज्वाला जी , श्री चिंतपूर्णी जी ,माता ब्रजेश्वरी मंदिर ,श्री चामुंडा जी ,बाबा बालक नाथ मंदिर व श्री रेणुका जी सहित अनेकों मंदिर वह धार्मिक स्थल देश-विदेश के लोगों को आस्था का केंद्र बने हुए हैं। आज हम ऐसे ही एक अन्य धार्मिक स्थल की बात कर रहे हैं जो पवन पुत्र हनुमान जी को समर्पित है वह स्थल पर्यटन नगरी कसौली का प्रसिद्ध मंकी पॉइंट है यहां देश-विदेश के पर्यटक वर्ष भर आते हैं यह स्थल भारतीय वायुसेना स्टेशन के तहत आता है इससे वहां सुरक्षा का भी पूरा ख्याल रखा जाता है


रामायण काल से जुड़ा है संबंध



मंकी प्वाइंट कसौली का संबंध रामायण काल से ही जुड़ा है और इसलिए इसका धार्मिक महत्व श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ है ऐसा माना जाता है कि जब लंका में राम और रावण युद्ध के दौरान मेघनाथ के शक्ति बाण से लक्ष्मण मूर्छित हो गए थे। तो हनुमान जी को संजीवनी बूटी लाने के लिए हिमाचल भेजा था। संजीवनी बूटी के बजाय हनुमान जी पूरा हिमालय पर्वत ही उठा लाए थे हिमालय पर्वत लाते समय उनका बांया पांव कसौली कि इस ऊंची पहाड़ी पर टिका था जिस कारण इस भूखंड की आकृति विशाल दाएं पांव की तरह है यहां पर पहाड़ी पर बने मंदिर खुद में कुदरती गोद में बैठा हुआ महसूस किया जा सकता है



 मंदिर की पहाड़ियों पर बंदरों की टोलियां अठखेलियां करती रहती हैं। और कई बार लोगों से प्रसाद भी छीन लेते हैं इसलिए वहां खाद्य वस्तुएं ले जाना मना है वहां से एक और शिमला ,चायल,श्री नैना देवी ,कांगड़ा और ऊपर की तरफ हिमाचल की बर्फ से ढकी नजर आती है इससे दूसरी और चंडीगढ़, पंचकूला व मैदानी राज्यों के दृश्य मन मोह लेते हैं।


संजीवनी हनुमान मंदिर में करें हनुमंत के दर्शन



कसौली बस स्टैंड से करीब 4 किलोमीटर दूर वायु सेना स्टेशन है जहां से पूरी जांच प्रक्रिया के बाद ही आगे जाया जा सकता है। 300 मीटर की खड़ी पहाड़ी पर रेलिंग वाले रास्ते से चलकर ही मुख्य मंकी पॉइंट हिल पर बने संजीवनी हनुमान मंदिर में बजरंगबली के दर्शन किए जा सकते हैं। पहले यह स्थान स्थानीय करवाड़ देव के लिए भी जाना जाता था। और आसपास के ग्रामीण करवाड़ देव की पूजा करते थे । जब से एयर फोर्स स्टेशन वहां बना है तब से  मंदिर का सुंदरीकरण शुरू हुआ। और मंदिर के अलौकिक दर्शन दूर क्षेत्र से भी किए जा सकते हैं मंदिर में सुबह शाम पूजा होती हैं मंदिर सुबह 9 बजे खुल जाता है और शाम को 4 बजे बंद हो जाता है ।मंदिर की चढ़ाई चढ़ते समय राम नाम के दोहे रास्तों पर लिखे हैं। मंदिर में हनुमान जयंती पर विशाल भंडारे का भी आयोजन होता है।


नियमों का रखें पूरा ध्यान




यह मंदिर वायुसेना के स्टेशन में आता है इसलिए वहां नियमों का पूरा ध्यान रखें स्टेशन में प्रवेश करते समय हथियार, मोबाइल ,पेन ड्राइव, कैमरा, दूरबीन, रेडियो ,वॉकमैन ,लाइटर,MP3 प्लेयर और अन्य इलेक्ट्रॉनिक सामान ले जाना वर्जित है। इसलिए वहां आने वाले श्रद्धालुओं को इसका पूरा ध्यान रखना चाहिए और साथ ही प्लास्टिक ,खाद्य वस्तुएं ना ले जाएं।

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सोलन जिला के अर्की क्षेत्र में लुटरू महादेव सिगरेट पीने के लिए विख्यात, सिगरेट चढ़ाने से होती है मनोकामना पूरी


भारत वर्ष में हिमाचल,उत्तराखंड पहाड़ी राज्य होने के कारण देव भूमी के नाम से विख्यात है।देव भूमी होने के कारण यंहा स्थित मंदिर गुफाएं अपने आप मे इतिहास संजोए हुए है।जिनकी लोगों के बीच बहुत मान्यता है। बहुत से मंदिरों को इनकी अजीबो गरीब प्रथाओ की वजह से ख्याति मिल जाती है। जिला सोलन के अर्की जनपद के एक ऐसे मंदिर के बारे में कुछ ऐसी रोचक जानकारी है,जिसे सुनकर हर एक शख्स हतप्रभ रह जाता है। 



ऐसा ही एक मंदिर का निर्माण 16वीं शताब्दी मे हिमाचल प्रदेश के अर्की में 1621 में बनाया गया था।ये मंदिर प्रदेश सहित देश भर में काफी प्रसिद्ध है व आज विश्व मानचित्र पर अपनी उपस्तिति दर्ज करवा चुका है। इस मंदिर में भगवान शिव की प्राकृतिक शिवलिंग पिंडी है,जिसे लोग लुटरू महादेव के नाम से भी जानते हैं।लुटरू महादेव के इस प्राकृतिक पिंडी की खासियत है, कि यहां शिवभक्त रोजाना जल, धतुरा,भांग चढ़ाने नहीं बल्कि सिगरेट चढ़ाने आते हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि शिव की पिंडी पर सिगरेट रखते ही वह सुलगने लगती हैं और उसी समय शिव  भक्त भोले भंडारी के जयकारे लगाते हुए शिव भक्ति में लीन हो जाते है।



अर्की जनपद के लोगों का मानना है कि यहां के लुटरू महादेव को सिगरेट का शौक हैं और वह सिगरेट पीना पसंद करते हैं।इस वजह से यहां पर काफी ज्यादा संख्या में लोग हर रोज पहुंचते है। सभी भक्त शिवलिंग के आस-पास बने गड्ढे में सिगरेट चढ़ाकर जाते हैं और अपनी मन्नत मांगते हैं। इस गुफा में मान्यता है,कि सिगरेट चढ़ाने और मन्नत मांगने से सभी के काम सफल हो जाते हैं और भोले शंकर के जयकारे लगाने से भगवान शिव प्रसन्न हो कर भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करते है।शिव रात्री पर्व पर तो यंहा पर श्रद्धालुओं की भीड़ देखते ही बनती है।

@ akshresh sharma
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सोलन जिला अर्की के बाड़ीधार पर्वत पर सुनाई देती थी शिव की धुने, जिसे सुनकर शिव से मिलने पंहुचे पांडव बाडीधार

भोले शंकर से पांडवों का भव्य मिलन का प्रतीक है अर्की जनपद का बाड़ीधार मेला



सोलन जिला के अर्की उपमंडल के तहत प्राचीन ऐतिहासिक स्थल बाड़ीधार एक शक्ति पीठ के रूप में विख्यात है।बाड़ीधार का प्राचीन इतिहास पांड्वो से जुड़ा हुआ है। अर्की क्षेत्र का प्रसिद्ध बाड़ीधार महाभारत काल की पौराणिक कथाओं को संजोए हुए है और ये बाड़ादेव(युद्धिष्ठर) की आस्था भरी पौराणिक कथाएं लोगों के जीवन में भी अपना अलग महत्व रखती है। 



एक जनश्रुति के अनुसार कहा जाता है,कि आषाढ़ माह में आयोजित होने वाले बाड़ीधार मेले में पांडवों और भोले शंकर के मिलन का भव्य आयोजन होता है। इस आयोजन के माध्यम से नई पीढ़ी को क्षेत्र के इतिहास से अवगत करवाया जाता है तथा उन्हें अपने पूर्वजों से विरासत में मिली परंपराओं को निभाने का पाठ भी पढ़ाया जाता है। देव भूमि बाड़ी धार के बाड़ी मेले में जो आता है बाड़ा देव उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। यही कारण  है कि श्रद्धालु दूर-दूर से इस मेले को देखने के लिए यहां पहुंचते हैं। इस मेले की पूर्व संध्या पर इस स्थान पर जागरण का आयोजन होता है।



 एक किंवन्दन्ति के अनुसार पांडव जब अपने अज्ञातवास में विभिन्न जगहों पर गुफा व कंदराओं में अपने आप को छुपाते फिर रहे थे तो देव भूमी  में भोले शंकर को ढूंढते हुए हिमाचल की पावन धरा पर पहुंच गए। हिमालय भोले शंकरपर  का स्थान है व  पौराणिक ग्रन्थों में ऐसा वर्णन है।यहां की पर्वत मालाएं शिवालिक अर्थात शिव की जटाएं कही जाती हैं। जैसे ही उन्हें पता चला कि बाड़ी की धार पर्वत पर शिवजी की धुन बज रही है तो शिवजी के दर्शन की इच्छा लेकर पांडव वहां गए। दो दिन तथा तीन रात वहां प्रतिदिन जाते रहे। उन्हें शिवजी की धुन तो सुनाई दी, पर शिवजी नहीं मिले। देवाज्ञा से उन्हें वहीं प्रतिष्ठित हो जाने का आदेश हुआ। पांडवों को आकाशवाणी हुई कि आज से यह स्थान ज्येष्ठ युधिष्ठिर के नाम से जाना जाएगा और यह स्थान बाड़ी की धार के नाम से विख्यात होगा। पांडवों को भी अन्य स्थान मिले और वे उन स्थानों पर पूजे जाते हैं। कालान्तर में वहां बाड़ा देव की पूजा होने लगी।

भूतों से लोगों की रक्षा करते बाड़ा देव



कहते हैं कि पहाड़ी की दूसरी तरफ भूतों का साम्राज्य हुआ करता था वहां पर भूतों के लिए प्रारम्भ में नरबलि दी जाती थी,जो की बाद में पशुबलि मे परिवर्तित हो गई। बाड़ी की धार में बहुत बड़ा उत्सव होता है जहां पांचों पांडव अपने अपने स्थानों से आकर बाड़ा देव से मिलते हैं। वहां रात को कोई नहीं रुकता था। अगर कोई रुक भी जाता तो बाड़ा देव भूतों से लोगों की रक्षा करते थे। स्थानीय लोगों के अनुसार एक बार मेले में गया व्यक्ति जिज्ञासावश कि रात को यहां क्या होता होगा, ऐसा सोचकर वहां रुक गया और एक वृक्ष पर चढ़ गया जब अंधेरा घिरने लगा तो वहां भूतों का तांडव शुरू हो गया । वे लोगों द्वारा दी गई बलियों का भक्षण करने लगे। यह देख कर वह व्यक्ति भयभीत हो गया और चिल्लाने लगा। भूत उसको डराने लगे तो उसने बाड़ा देव से प्रार्थना की कि हे देव आप मुझे इस विपत्ति से बचा लें मेरी रक्षा करें। उसी समय वह वृक्ष वहां से उखड़ा और दयोथल नामक स्थान पर स्थापित हो गया, जो आज भी वहां है। उसके पश्चात बाड़ा देव आसपास के क्षे़त्र में विख्यात हो गए। यहां हर साल मेला लगता है जो बाड़ी का मेला के नाम से जाना जाता है। बाड़ादेव आज भी गुरों के माध्यम से लोगों की समस्याओं का निवारण करते हैं।

@akshresh sharma
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मनमोहक है कुनिहार की वादियां व धार्मिक स्थल , पर्यटन की दृष्टि से अपार संभावनाएं सिर्फ ध्यान देने की है जरूरत

कुनिहार का मनमोहक दृश्य 



कुनिहार क्षेत्र चारों तरफ़ से मनमोहक पहाडियों से घिरा हुआ है और कुनिहार का समस्त क्षेत्र समतल है जो अपने में बहुत से रहस्य छुपाकर बैठा है। कुनिहार के चारों ओर से नदीयां बहती है जोकि आपस में मिलकर एक हार यानी माला का रूप लेती है जिसके बीच में कुनिहार बसा हैं। नदियों को पहाड़ी भाषा में कुणी कहा जाता था जोकि हार का रुप लेती है कुणी और हार को मिलाकर कुनिहार का नाम दिया गया था।  आजादी  से पहले कुनिहार अंग्रेजों की पहली पसंद थी यंहा अंग्रेज रहा करते थे इस लिए आस पास के क्षेत्र के लोगों ने कुनिहार को छोटी विलायत का नाम दिया। 

 यूं तो कुनिहार का नाम छोटी विलायत के नाम से जाना जाता है। लेकिन आपको शायद ही पता हो कि कुनिहार में कई ऐसे स्थल भी है यदि उन पर थोड़ा ध्यान दिया जाए तो यह शहर पर्यटन स्थल के रूप में तब्दील हो सकता है लेकिन अफसोस इस बात का है कि हर बार इस क्षेत्र  से जो भी विधायक चुन कर आते हैं वो चुनाव जीतने के बाद शहर के प्रति उदासीन रवैया पाते हैं जिसके कारण यहां की ऐतिहासिक  स्थल धूल फांक रहे है आइए एक नजर डालते हैं कुनिहार के दर्शनीय स्थलों पर।

शिव तांडव गुफा कुनिहार

सोलन जिला के कुनिहार में भगवान भोलेनाथ की शिव तांडव गुफा सालों से श्रद्धा और भक्ति भाव का केंद्र बनी हुई है गुफा के अंदर गाय के थन के आकार की चट्टानों से कभी शिवलिंग पर दूध गिरता था। लेकिन बाद में पानी गिरना शुरू हो गया मान्यता है कि यहां पर शिव भगवान ने कठिन तप किया था।  शिव का यह स्थल धार्मिक पर्यटन के रूप में विकसित हो रहा है यहां शिवरात्रि पर श्रावण मास के महीने में मेला लगता है इस गुफा के अंदर ही प्राचीन काल से शिवलिंग स्थापित है यहां शिव परिवार के साथ साथ नंदी की शीला विस्थापित है बताया जाता है कि गुफा से एक रास्ता भी होता था।  लेकिन अब बंद हो गया है यह शिव गुफा पूर्व दिशा की ओर है। यहां पर शिवलिंग शेषनाग व नंदी की स्मृति चिन्ह है शिव तांडव गुफा  धार्मिक पर्यटन  स्थल के रूप  में विकसित हो रही है लोगों के जन सेवा से यहां पर कई विकास कार्य हो रहे हैं।


शिव मंदिर तालाब व राजा का महल


शिव मंदिर तालाब में आज भी घोड़े टापों और जूतों की आवाज सुनाई देती है  लोगों के यकीन में रियासत के राजा राय आनंद देव सिंह आज भी अपनी रियासत में  लोगों की रक्षा के लिए चक्कर लगाते हैं आज भी स्वर्गीय राजा आनंद देव सिंह के घोड़ों के टापू की आवाजें सुनाई देती है ऐसा लगता है कि मानो कि आज भी कोई देर रात को यहां के स्थानीय बाजार से  शिव मंदिर तालाब तक प्रहरी की तरह रखवाली कर रहा हो।  कुनिहार के राजा राय आनंद देव सिंह के  वंशजों ने उनकी याद में मंदिर रूप स्मारक भी बनाया गया है  बताया जाता है कि साल 1799 मैं नालागढ़ और बागड़ रियासत एक हो गए थे दोनों रास्तों ने कुनिहार रियासत पर एक नाकाम  कोशिश की थी शिवरात्रि के दिन राजा राय आनंद देव सिंह पर धोखे से हमला कर उन्हें गोली मार दी गई थी घायल होने के बावजूद भी राजा वह उनके साथियों ने मिलकर दुश्मनों  से काफी देर तक लोहा लिया लड़ते-लड़ते राय देव आनंद सिंह घोड़े से एक जगह गिर गए और वीरगति को प्राप्त हुए जहां उनका शरीर गिरा वहीं उनका अंतिम दाह संस्कार किया गया। 1799-1947 तब कुनिहार रियासत में शिवरात्रि पर्व मनाए जाने पर प्रतिबंध था कुनिहार रियासत के 388 पीढ़ी के राणा संजय देव सिंह आज भी अपने पुश्तैनी धरोहरों को संजोए हुए हैं आज भी आज दरबार कुनिहार में कई पुरातन पांडुलिपि राजाओं के समय के हथियारों  और दस्तावेजों को देखने के लिए कई राज्यों से लोग आते जाते रहते हैं


मंगला माता मंदिर


कुनिहार के साथ लगती कोठी पंचायत के नमोल गांव में मंगला माता का भव्य प्राचीन मंदिर है जहां दुर दुर से लोग दर्शन के लिए  भक्त आते हैं भक्तों के अनुसार जो भी यहाँ सच्चे मन से कुछ मागते हैं उनकी मनोकामना अवश्य पुरी होती है।

दानो देव मंदिर


कुनिहार क्षेत्र को दानो देव भुमि के नाम से भी जाना जाता है लोगों के अनुसार दानो देव प्रेहरी की तरह हर रोज़ कुनिहार क्षेत्र की परिक्रमा करते हैं और क्षेत्र की क्षेत्रपाल की तरह रक्षा भी करते हैं कुनिहार के समस्त क्षेत्र वासियों का कुल देव भी दानो देव ही है। जिसका भव्य मन्दिर कुनिहार के गांव परम्याणी में स्थित है। 


बृजेश्वर देव गम्बरपुल


कुनिहार से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बृजेश्वर देव स्थल आस्था का केंद्र है बृजेश्वर देव प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में दयोथल से गोपनीय मार्ग से आते आराध्य शिव को पूजते और लौट जाते। जनश्रुति  के आधार जब बृजेश्वर देवता की पूजा का रहस्य आम जनता तक पहुंचा तो लोगों में   जिज्ञासा हुई और लोगों का वहां पर आना शुरू हुआ।  आज बृजेश्वर देव लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है उस मंदिर पर जाने के लिए लोहे के पुल से गुजर कर जाना पड़ता है जो कि 1923 में अंग्रेजों द्वारा बनाया गया था।   बृजेश्वर मंदिर का नजारा पर्यटन की दृष्टि से बहुत अद्भुत है।

कुनिहार एक केन्द्र बिन्दु है यहां से 15 किलोमीटर की दूरी पर बाघल रियासत है और बाघल रियासत के अर्की क्षेत्र में भी बहुत से धार्मिक दर्शनीय स्थल हैं जैसे लुटरू महादेव, मुटरू महादेव व सकनी आदि। लगभग 38 किलोमीटर दूरी पर  शिमला  35 किलोमीटर सोलन तथा 55 किलोमीटर की दूरी पर नालागढ़ है।अगर पर्यटन की दृष्टि से देखा जाए तो कुनिहार क्षेत्र में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। 
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सोलन जिला के अर्की दानोघाट में महाभारत काल में भीम द्वारा फेंके गए पत्थर का प्रत्यक्ष प्रमाण

पत्थर करोड़ो वर्षो से इसी स्थान पर एक पत्थर पर विद्यमान

महाभारत काल से जुड़ी घटनाओं के प्रत्यक्ष प्रमाण आज भी प्रदेश में देखने को मिलते है । ऐसा ही एक प्रत्यक्ष प्रमाण अर्की के दानोघाट स्थित एक शिला पर दूसरी विशालकाय शिला को देखने से मिलता है । कहा जाता है कि यह शिला अज्ञातवास के दौरान भीम ने धामी से गुलेल के जरिये यहाँ फेंकी थी जो आज भी हजारों वर्षों से यही स्थापित है।यह पत्थर करोड़ो वर्षो से इसी स्थान पर एक पत्थर पर विद्यमान है । पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि जब पांडव अज्ञात वास के दौरान हिमाचल के धामी आये थे तो भीम ने गुलेल से यह पत्थर पैंका था जो अर्की के दानोघाट में जाकर एक शिला पर अटक गया था ।



भारी भरकम इस पत्थर को देखने से सभी आश्चर्यजनक रह जाते है कि यह इस पर आज दिन तक कैसे टिका है। शिमला-बिलासपुर नैशनल हाईवे से कुछ दूरी पर स्थित ढलानदार जगह पर एक पत्थर पर टिके इस अद्भुत विशालकाय पत्थर को देखने के लिए दूर दूर से लोग आते है।स्थानीय लोगों की माने तो यह पत्थर सदियों से इसी जगह पर विराजमान है । कहा जाता है कि भीम ने गुलेल से इस पत्थर को धामी से यहां फैंका था ।अगर सरकार इस जगह को पर्यटन की दृष्टि से विकसित करे तो यह एक पर्यटक स्थल बन सकता है

आंधी-तूफान व भूकंप आने पर भी इस पत्थर को आज दिन तक कोई नुकसान नही पहुंच पाया है । कुदरत के इस नजारे को विकसित करने के लिए अगर सरकार कोई प्रयास करे तो इसे आने वाले समय में पर्यटन की दृष्टि से विकसित करके जहाँ स्थानीय लोगों को आजीविका कमाने का अवसर प्राप्त होगा वहीँ सरकार के राजकोष में वृद्धि होगी।

@ rakesh kumar
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कैलाश पर्वत का अनसुलझा रहस्य

कैलाश पर्वत हिमालय में पाई जाने वाली चोटियों में से एक पर्वत है, जो भारत और तिब्बत में फैला हुआ है। माना जाता है कि कैलाश पर्वत भगवान शिव का पवित्र निवास स्थान है, उन्हें कहा जाता है कि वे अपने सानिध्य में पार्वती और अपने प्रिय वाहन नंदी के साथ अनन्त ध्यान में हैं।
प्राचीन पाठ के अनुसार, यह कहा जाता है कि किसी भी नश्वर को कैलाश पर्वत के ऊपर नहीं जाने दिया जाएगा, जहां बादलों के बीच देवताओं का घर है। वह जो देवताओं के चेहरे को देखने के लिए पर्वत के शीर्ष पर शुरू करने की हिम्मत करता है, उसे मौत के घाट उतार दिया जाएगा। शिव के रहस्यमयी निवास के बारे में अधिक जानने के लिए नीचे स्क्रॉल करें।
1.स्थिति में नियमित परिवर्तन
11 वीं सदी के तिब्बती बौद्ध भिक्षु, जिसे मिलारेपा कहा जाता है, के अलावा कोई भी व्यक्ति चोटी काटने में सफल नहीं होता है क्योंकि यह अपनी मंजिल को बदल देता है और पर्वतारोहियों को गुमराह करने वाली पटरियों को अवरुद्ध कर देता है। ट्रेकर्स विपरीत दिशा में नीली चाल से बाहर निकल जाएंगे या खराब मौसम की स्थिति को देखेंगे जो उन्हें नीचे उतरने के लिए मजबूर करते हैं, जिनमें से कई कभी नहीं लौटे हैं। शिखर तक के सभी ट्रेक आज तक असफल रहे हैं।
2. दुनिया की केंद्रीय धुरी?

बड़ी संख्या में रूस और अमेरिका के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययनों का मानना है कि पवित्र शिखर दुनिया का केंद्र है और इसे धुरी कुंडी के रूप में जाना जाता है। यह दुनिया भर में कई अन्य स्मारकों से जुड़ा हुआ है, जैसे कि स्टोनहेंज, जो यहां से 6666 किमी दूर है, उत्तरी ध्रुव भी यहां से 6666 किमी दूर है और दक्षिणी ध्रुव चोटी से 13332 किमी दूर है। कैलाश पर्वत, को वेदों में भी ब्रह्मांडीय अक्ष या विश्व वृक्ष माना जाता है और रामायण में भी इसका उल्लेख मिलता है।
3.आप गवाह कर सकते हैं समय यात्रा
जिन लोगों ने पवित्र पर्वत का दौरा किया, उन्होंने दावा किया है कि उन्होंने तेजी से विकास पर ध्यान दिया है, खासकर नाखूनों और बालों का। नाखूनों और बालों की वृद्धि, जो सामान्य परिस्थितियों में लगभग 2 सप्ताह तक होती है, यहाँ होती है, यहाँ, केवल 12 घंटों में; पहाड़ की हवा तेजी से उम्र बढ़ने की प्रक्रिया में योगदान देती है।
4.स्वर्ग और पृथ्वी के बीच पौराणिक लिंक
माउंट कैलाश के चार मुख कम्पास की चार दिशाओं का सामना करते हैं। वेदों के अनुसार, पर्वत स्वर्ग और पृथ्वी के बीच की एक कड़ी है। हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म और जैन धर्म के अनुयायी मानते हैं कि शिखर स्वर्ग का प्रवेश द्वार है। माना जाता है कि द्रौपदी के साथ पांडवों को शिखर तक पहुँचने के दौरान मोक्ष की प्राप्ति हुई थी, जिसमें से एक शिखर पर पहुँचने से पहले ही गिर गया था।

5. स्वस्तिक और ओम पर्वत का निर्माण
जब सूर्य अस्त हो रहा होता है, तो पहाड़ को एक छाया डालने के लिए कहा जाता है, जिसमें स्वास्तिक के धार्मिक प्रतीक के समान एक आकर्षक आकृति होती है, जिसे हिंदुओं के बीच एक शुभ संकेत माना जाता है। ओम पर्वत अभी तक एक और अनसुलझा रहस्य है जो आकर्षक है, क्योंकि बर्फ शिखर पर गिरती है और ओम का आकार लेती है।
6. एक मानव निर्मित पिरामिड?
रूसी वैज्ञानिकों का मानना है कि कैलाश पर्वत नहीं है क्योंकि यह प्राकृतिक घटना के रूप में माना जाता है। पूरे शिखर में एक गिरजाघर का एक सादृश्य है और किनारे बेहद लंबवत हैं जो इसे एक पिरामिड का रूप देता है।
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स्वर्गलोक के लिए बनी सीढ़ियों का प्रत्यक्ष प्रमाण है जिला सोलन अर्की जखौली के प्राचीन मंदिर में।

आस्था का प्रतीक जखौली देवी मंदिर

अर्की-कुनिहार सड़क मार्ग पर हनुमान मंदिर से करीब छः सौ मीटर की दूरी पर जखौली गांव में माँ भगवती भद्रकाली का प्राचीन प्रसिद्ध मंदिर है । यह मंदिर जखौली देवी के नाम से जाना जाता है । किवंदन्ति के अनुसार कहा जाता है अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने इस मन्दिर की स्थापना की थी,लेकिन वर्तमान मंदिर का प्रारूप सिद्धराज ने सन 1745 के आसपास तैयार किया था ।जखोली मन्दिर के बारे में एक दन्त कथा भी प्रचलित है कि जब माँ भगवती स्वर्गलोक के लिए सीढ़ियों को बना रही थी तभी एक ग्वाले ने यह देखकर शोर मचाना शुरू कर दिया था,उसी समय माँ भगवती ने उस ग्वाले को अपने चरणों के नीचे ले लिया था। वह सीढ़िया आज भी प्रत्यक्ष रूप से मन्दिर में देखी जा सकती है ।



सन 1991 तक हम इस मंदिर को पुराने स्वरूप में ही देखते थे जिसके पुनर्निर्माण का बीड़ा बातल निवासी सरस्वती देवी धर्मपत्नी स्वर्गीय  केशव राम पाठक ने उठाया था।जखौली मंदिर परिसर के विस्तारीकरण के लिए विकास में जनसहयोग,श्रद्धालुओं व स्थानीय पंचायत देवरा की अहम भूमिका रही है ,जिसमें अब तक करीब 25 लाख रुपये की धनराशि से पुराने मन्दिर को नया स्वरूप दिया गया है ।वहीँ सरायों व बड़े हॉल का निर्माण हुआ है जहाँ पर सैंकड़ो लोग धूप व बारिश में भी एक साथ पूजा अर्चना का कार्य आराम से कर सकते है।


माँ भद्रकाली देवी ज़िला सोलन के अलावा अन्य जिलों व राज्यों की भी कुलदेवी है , जिसके चलते माँ के भक्त वर्ष भर अपनी कुलजा के दर्शन के आते रहते है । माँ जखौली देवी भी अपने भक्तों को निराश नही करती और उनकी मनोकामना को पूर्ण करती है । अक्टूबर माह में होने वाले नवरात्रों के दौरान दुर्गा अष्टमी को मेले का आयोजन भी किया जाता है ।जिसे देखने के लिए लोग दूर-दूर से यहाँ पहुंचते है । राजाओं के समय से जखौली देवी मंदिर की देखरेख व पूजा अर्चना का कार्य भट परिवार करता आ रहा है ।जिसकी चौथी पीढ़ी आज इस कार्य को बखूबी सम्भाल रही है।


इस मंदिर के साथ ही एक और ऐतिहासिक स्थल शिव मंदिर भी है कहा जाता है कि जब शिव गुफा के पास राजा विश्राम कर रहे थे और उन्हें प्यास लगी तो एक नट ने अपनी साधना के बल से उसी स्थान पर पानी का चश्मा निकाल दिया लेकिन फिर बन्द न कर देने की आशंका से उस नट की गर्दन को काट कर वहीँ एक शिला के नीचे दबा दिया था। वह शिला आज भी प्रत्यक्ष रूप से उसी तरह विद्यमान है। कभी-कभी हैरानी भी होती है कि बातल से जखौली गांव तक की एक किलोमीटर लंबी व पांच सौ फीट ऊंची पहाड़ी में आखिर कितना बड़ा पानी का भंडारण है जो 4 से 6 इंच लगातार बिना रुके बहता जा रहा है ।जखौली मन्दिर सोलन ज़िला,प्रदेश व बाहरी राज्यो के लिए आस्था व श्रद्धा का केन्द्र बना हुआ है ।

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हिमाचल प्रदेश सोलन जिला की कुनिहार रियासत संवे मुलख के नाम से थी मशहूर

जम्मू से आए सूर्यवंशी राजपूत अभोज देव ने कुनिहार रियासत की रखी थी नींव



हिमाचल प्रदेश के अस्तित्व में आने से पूर्व  कुनिहार एक छोटी  सी रियासत थी। कुनिहार रियासत को संवे मुलख के नाम से मशहूर इस क्षेत्र को प्राकृतिक सौंदर्य के कारण छोटी विलायत भी कहा जाता है व छोटी विलायत के नाम की कान में भनक पड़े तो मानस पटल पर एक दम कुनिहार का नक्शा उभर जाता है। दसवीं शताब्दी के आस पास अखनूर जम्मू से आए सूर्यवंशी राजपूत अभोज देव द्वारा कुनिहार रियासत की नींव रखी व इस रियासत के अंतिम शासक राणा हरदेव सिंह थे।

 कुनिहार जनपद  आज बहुत तेजी से शहरीकरण की और बड़ रहा है।चारो ओर से पर्वतीय शैल मालाओं की हरित घाटियों से घीरा कुनिहार प्रदेश में आज अपनी एक अलग ही पहचान बनाता है।पहाड़ी रास्तो पर चलते हुए जब कुनिहार में प्रवेश करते है तो कोठी घाटी से तालाब तक  समतल टापू सा दिखने वाला कुनिहार शहर अपनी खूबसूरती खुद ही बयान करता है।जिला मुख्यालय सोलन व प्रदेश की राजधानी शिमला से कुनिहार मात्र 40 किलोमीटर की दुरी पर है। कुनिहार शहर जंहा आज करयांना ,कपड़ा,रेडीमेट व अन्य थोक के कारोबार में हिमाचल प्रदेश में अपनी एक अलग पहचान बना चुका है,तो वंही शिव तांडव गुफा,शिवमंदिर तालाब ,बनिया देवी सहित कई पर्यटन स्थल भी लोगो को अपनी और आकर्षित करते है।




शिव तांडव गुफा तो विश्व मानचित्र पर अपना नाम बना चुकी है व यंहा पर दूर दराज क्षेत्रो से आये दिन पर्यटकों की भीड़ रहती है।वंही बनिया देवी भी पर्यटन विभाग की ''कहानी गावं गावं की ''में अपना नाम  दर्ज करवा चूका है।वंही तालाब के सौन्दर्यकरण के लिए कुनिहार पंचायत व् पर्यटन विभाग सजिन्दगी से कार्य कर रहे है।हिमाचल पर्यटन विभाग द्वारा कुनिहार शहर के इन महत्वपूर्ण पर्यटन स्थलों को विकसित करने में कोई कसर नही छोड़ी है व अब वो दिन दूर नही है जब प्रदेश में कुनिहार पर्यटकों के लिए महत्वपूर्ण स्थल होगा।कुनिहार के नामकरण को लेकर एक पुरातन कहानी भी है।इस सुंदर से टापू के चारो और कुणी खड़ बहती है जो कि इस टापू को हार सा पहनाती नजर आती है।इसी कारण प्रदेश की इस खूबसूरत वादी का नाम कुनिहार पड़ा।कुनिहार जनपद की माटी के लोग भी अपार प्रतिभा के धनी है।

क्षेत्र के युवाओ में जंहा अलीशा छोटे पर्दे ज़ी टीवी पर जवांई राजा व कई अन्य धारावाहिको में लीड भूमिका में अपनी अदाकारी से देश विदेश में कुनिहार क्षेत्र का नाम रोशन कर रही है । वहीं  कृतिका तनवर, हिमाशीं तनवर सोनी टीवी ,एंडीटीवी व पंजाब मे अपनी आवाज से नाम कमा रही है उसके साथ हि गोगी बैंड व रुद्राक्ष बैंड हिमाचल तथा बाहरी राज्यों मे कुनिहार का नाम रोशन कर रहे हैं स्व० ठाकुर हरिदास जैसे व्यक्तित्व प्रदेश में विकास के मसीहा के रूप में जाने जाते है,तो लोक गायिकी में स्व० हेत राम तनवर ने राष्ट्रपति अवार्ड पा कर कुनिहार क्षेत्र का नाम रोशन किया है,तो वन्ही बाबू कांशी राम जैसे स्वतंत्रता सेनानी भी कुनिहार की धरती पर ही पैदा हुए व स्वन्त्रता संग्राम में इनकी उलेखनीय भूमिका रही। कुनिहार के इतिहास को सजोंये रखने में कुनिहार क्षेत्र के प्रख्यात साहित्यकार स्व०प्रो०नरेंद्र अरुण जी का उल्लेखनीय योगदान रहा है। ............


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आस्था व श्रद्धा का अभूतपूर्व स्थल है रिहाल कुंडी, यंहा पर किसी भी तरह की मन्नत मांगने पर होता है हर समस्या का निदान



पांड्वो को समर्पित यह स्थल पंच पीर के नाम से विख्यात । 





कुनिहार से मात्र तीन किलोमीटर की दूरी पर कुणी खड्ड के साथ है आस्था पूरक स्थल रिहाल कुंडी।रिहाल कुंडी पहुंचने के लिए कुनिहार डुमेहर मार्ग या फिर कुनिहार नालागढ़ मार्ग पर कुणी पुल से भी पहुंचा जा सकता है।जनश्रुति के अनुसार कुणी खड्ड की निर्मल धारा के साथ ही लोगो के आस्था व श्रद्धा का यह स्थल है।पांडव अज्ञातवास के दौरान इस स्थल पर रहे होंगे।पांच पांड्वो की तपोस्थली होने की वजह से रिहाल कुंडी मनवांछित फल देने वाली स्थली के नाम से विख्यात हो गई होगी।


पंच पीर अर्थात पांच पांडव जो की सभी की मुरादों को कालातंर से पूरी करते आ रहे है,आज भी उन्ही के आशीर्वाद से लोगो की इस स्थान के प्रति अटूट आस्था बनी हुई है।पांड्वो को समर्पित यह स्थल पंच पीर के नाम से भी विख्यात है। मनोकामना पूरी होने पर लोग इस स्थान के पास नदी से पांच पत्थरो पर मौली कपड़ा लपेट कर फूल,अक्षत,सिंदूर से पूर्ण श्रद्धा से पूजन करते है। जनश्रुति के अनुसार कुनिहार,बाघल व पट्टा महलोग,नालागढ़ व हंडूर रियासत के लोग अपने पशुओं के नए दूध पर होने पर रिहाल कुंडी में पंच पीर पांडवों को खीर बना कर भोग लगाते थे।


एक किवंदन्ति के अनुसार कालांतर में इस स्थान के पास नदी में हाथ डालकर बर्तनों की मांग भी पूरी होती थी।नदी से खीर खिचड़ी या अन्य प्रसाद बनाने के लिए टोकने ,कड़ाई आदि जरूरत के बर्तन स्वयं नदी से याचना करने पर मिल जाते थे।परन्तु आज नदी से बर्तन तो नही मिलते,परन्तु लोगो की आस्था पूर्वत आज भी बनी हुई है।लोग आज भी गाय भैंस के नए दूध का पहला चढ़ावा रिहाल कुंडी में ही पंच पीर को चढ़ाते है। किसी भी तरह की मनोकामना के पूरी होने पर अक्सर लोग यंहा पर खीर ,खिचड़ी के अतिरिक्त मुर्गा,बकरा भी चढ़ाते है। 

लोगो के अनुसार बरसात में नदी चाहे कितनी भी चढ़ जाए,परन्तु इस स्थान को पानी नही छूता। लोगो की विकट से विकट समस्याओं का निराकरण होने पर अक्सर सोमवार व बुधवार के दिन चढ़ावे में बकरा व अन्य पशु बली देते हुए भी लोग यंहा देखे जा सकते है।नदी के साथ ही पहाड़ी पर रिहाल कुंडी देवी का मंदिर भी बना हुआ है।इस मंदिर को कुनिहार के स्वर्गीय राम लाल व्यवसायी द्वारा बनवाया गया था।सोमवार व बुधवार को स्थान पर लोगो की भारी भीड़ रहती है।




Source: Akshresh Sharma

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हिमाचल प्रदेश जिला सोलन के कुनिहार में 10 भुजाओं वाली सिंह वाहिनी बनिया देवी मां दुर्गा का प्राचीन मंदिर ।



हिमाचल प्रदेश शिमला - नालागढ़ मार्ग पर कुनिहार से करीब 3 किलोमीटर की दूरी पर साधारण पहाड़ी शैली में बनिया देवी का प्राचीन मंदिर प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत उदाहरण है । ऐसा सुनने में आता है , कि रियासत काल में जब कुछ राजपूत राजा उज्जैन से बघाट रियासत में रहने आए थे , तो उन्होंने इस स्थान पर अपनी कुलदेवी की स्थापना की थी। इस देवी को 10 भुजाओं वाली सिंह वाहिनी भी माना जाता है और यह स्थली बणी नाम से भी पहचानी जाती है। लगभग 10 -12 बीघे में फैले आम और अमरुद के फलों के बाग के मध्य में आम के वृक्ष के पास चमत्कारी जल स्त्रोत का चश्मा है ,जो किसी भी मौसम में सूखता नहीं है और निकटवर्ती गांव शाकली ,काउंटिं व बनिया देवी के गांव वासी अधिकतर इसी चश्मे के पानी का प्रयोग करते हैं।इस चश्मे के फूटने अथवा बनिया देवी के प्रकट होने के पीछे एक लोक कथा  भी है ।

जनश्रुति के अनुसार कुनिहार के राणा हरदेव सिंह को ब्रह्ममुहूर्त में एक दृष्टांत एवं भविष्यवाणी हुई, कि मैं वन देवी दुर्गा तुम्हारे बगीचे में जल कल्याण के लिए प्रकट होना चाहती हूं और मुझे निर्दिष्ट स्थान से निकाल कर वंहा पर मेरा मंदिर भी बनाओ ।धर्म परायण राणा हरदेव सिंह ने राज पंडितों को बुलाकर सभा में स्वयं का दृष्टांत सुनाया व ज्योतिष आचार्यों ने गणना की और भविष्यवाणी को सही ठहराते हुए राणा जी को देवी की प्रतिमा को निकालने का निर्देश दिया।

फलित शुभ मुहूर्त में सांकेतिक स्थान की बगीचे में खुदाई की गई और स्थल पर उपस्थित लोगों को तब आश्चर्यचकित होना पड़ा ,जब थोड़ी सी खुदाई पर ही उक्त स्थल पर ही दुर्गा माता की प्रतिमा और प्रतिमा के साथ तीन अन्य प्राचीन प्रतिमाएं निकली,जिन्हें  ज्योतिषियों ने माता दुर्गा के गणों की संज्ञा से विभूषित किया। राणा हरदेव सिंह का स्वप्न तो साकार हुआ ही ,परन्तु  उससे भी अत्यधिक आश्चर्यजनक घटना यह हुई की मूर्तियों की खुदाई संपन्न होते ही जमीन से मीठे पानी का चश्मा भी माँ दुर्गा के चरण कमलों से फूट पड़ा ,जो कि पहले नहीं था।

मां दुर्गा के दृष्टांत को अमली जामा पहनाते हुए हरदेव सिंह ने ना केवल मूर्तियो की प्राण प्रतिष्ठा की, अपितु मंदिर बनवा कर प्रतिवर्ष मां दुर्गा की पुण्य स्मृति में ज्येष्ठ मास की अष्टमी को मेले के आयोजन के निर्देश दिए। हिमाचल प्रदेश के अस्तित्व में आने से पूर्व राणा हरदेव सिंह बनिया देवी मेले का आयोजन करवाते थे ,और निकटवर्ती क्षेत्रों से कुश्ती प्रेमियों के लिए रियासत के नामी बड़े बड़े पहलवान कुश्ती के दाव पेंच दिखा कर मनोरजंन करते।बगीचे में सप्ताह भर उनके ठहरने की व्यवस्था राज दरबार की ओर से होती थी। बनिया देवी मेले का मुख्य आकर्षण कुश्तियां ही रहती है।आज बणिया देवी गांव को पर्यटन विभाग द्वारा भी " हर गांव की कहानी " में स्थान मिल गया है।आज पंचायत स्तर पर ज्येष्ठ माह की अष्टमी को लगने वाले मेले को बदस्तूर कायम रखा गया है। कुनिहार जनपद के लोग आज नई फसल आने पर बनिया देवी मंदिर में चढ़ावा चढ़ा कर माता दुर्गा का आशीर्वाद लेते है।
@akshresh sharma

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लोक संगीत के लिए राष्ट्रपति अवार्ड से सम्मानित स्वर्गीय हेतराम तनवर उस्ताद बूटा खां के संगीत के थे कायल ।

पाकिस्तान के लाहौर में भी अपनी आवाज का मनवा चुके हैं लोहा।



हिमाचल प्रदेश के अस्तित्व में आने से पूर्व कुनिहार एक छोटी सी रियासत थी।जम्मू अखनूर से आये सूर्यवँशी शासकों में अंतिम शासक राणा हरदेव सिंह को लोक गायिकी को प्रोत्साहित करने का श्रेय जाता है।उस समय कुनिहार क्षेत्र के स्व० हेत राम तनवर ने लोक गायिकी में रियासत का नाम रोशन किया था व लोक गायिकी में राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान प्राप्त किया।पाकिस्तान के लाहौर में भी अपनी आवाज का लोहा मनवा चुके तनवर को अपने अंतिम समय मे इस बात का मलाल रहा कि आखिर यह सरहदे बनी ही क्यों। 2006 में तत्कालीन राष्ट्रपति स्व०डॉ०अब्दुल कलाम ने तनवर को लोक संगीत व शास्त्रीय गायकी को जीवंत रखने के लिए राष्ट्रपति अवार्ड से नवाजा  था।कुनिहार रियासत में कोई भी बड़ा कलाकार आता तो हेत राम के माता पिता को ढोल नगाड़े को बजाने के लिए विशेष तौर पर बुलाया जाता था।होश सम्भालते ही हेत राम तनवर भी इन महफिलों में शिरकत करने लगे और यंही से उनके जीवन मे एक बदलाव आया।



जानकारी के अनुसार 1940 में राणा हरदेव सिंह के दरबार मे उस्ताद बूटा खां की महफ़िल सजती थी और ढोलक-नगाड़ो से संगीत दिया जाता था।स्व०हेत राम भी उस्ताद बूटा खां के संगीत के कायल थे व उन्ही की महफिलों में गाते हुए उनकी रुचि संगीत के प्रति बढ़ने लगी। जानकारी के अनुसार उस समय अयोध्या से महंत सुख राम की पार्टी कुनिहार में रामलीला करने आती थी व तनवर उस पार्टी से जुड़कर मात्र 30 रु महीने की बगार पर काम करने लगे।कुनिहार रियासत के आसपास तत्तापानी,धुन्धन,भज्जी आदि रियासतों में अपनी गायन कला को निखारने लगे।धीरे धीरे पंजाब की सरगोदा,गुजरावाला,शेखपुर आदि रियासतों में अपनी गायकी का लोहा मनवाया।लोक गायिकी में ख्याति मिलने पर आकाशवाणी शिमला ने बिना किसी ऑडिशन के उन्हें आर्टिस्ट बनाया व उनकी गायिकी गावं व शहरों तक पहुंच गई, जिसे लोगो ने बहुत पसंद किया। एक जनवरी 1932 को



कुनिहार हाटकोट में जन्मे हेत राम तनवर इंडियन आइडल फेम कृतिका तनवर के दादा थे। तनवर ने राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी हिमाचली फोक को ख्याति दिलाई ।उनकी गाई गंगी, शंकरी, मोहणा ,बामणा रा छोहरूवा व ओ गम्भरीये खाणा पीणा नन्द लेणी हो आज भी हर किसी की जुबान पर आ जाती है। सोलन जिला के कुनिहार से संबंध रखने वाले इस लोक गायक ने अपनी पत्नी के देहांत के बाद शिमला स्थित माहूंनाग मंदिर में शरण ली।जनवरी 2016 में 84 वर्ष की आयु में उनका निधन अपने पैतृक गावं हाटकोट कुनिहार में हुआ।उनके निधन से लोक गायिकी व सांस्कृतिक क्षेत्र में मातम छा गया था। उनकी इस लोक गायकी को उनके परिवार वालों ने आज भी सहेज कर रखा है। आकाशवाणी शिमला से उनके बेटे प्रेम सिंह, बहू मीनाक्षी ,और पोते राहुल व पोती कृतिका की आवाज सुनने को मिलती है,जो कि कुनिहार क्षेत्र के लिए बहुत ही सम्मान की बात है।

©Akshresh Sharma
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जहरीले सांप का जहर फोन पर ही उतार देते है जिला सोलन के सुरेन्द्र कुमार



सोलन (देव तनवर) 

परोपकार की भावना से किया गया कोई भी कार्य तभी सफल होता है ,यदि उसमे कार्य करने वाले का कोई भी निजी स्वार्थ न हो।ऐसी ही लग्न व निस्वार्थ सेवा भाव से जन सेवा कर रहे है जिला सोलन के सुरेन्द्र कुमार। रावमापा गुलरवाला में डीपी के पद पर तैनात सुरेन्द्र कुमार किसी भी जहरीले सांप का जहर फोन पर ही उतार देते है। खुदा की रहमत से उन्हें जहरीले सांपो को पकड़ने में भी महारत हासिल है।



सुरेन्द्र कुमार का कहना है कि वे 14 वर्ष की आयु से सांपो को पकड़ने का कार्य कर रहे है।आज तक 12031 कोबरा सांप,  9022 रेसर सांप,8010 रुस्सल वाईपर, 9000 सांप अन्य प्रजातियों के पकड़ चुके है।
वर्ष 2018 में ही कुल 6024 विषैले सांप पकड़ चुके है व आज तक कुल 38033 सांप पकड़ चुके है।हालांकि सांप पकड़ते हुए उन्हें 24 मर्तबा काट चुका है।लोगो कोे सांप काटने के इलाज फोन पर करके ही वे हजारो जिंदगियां बचा चुके है।

इस पुनीत कार्य के लिए हिमाचल सहित पंजाब,हरियाणा व चंडीगढ़ की 23 समाजसेवी संस्थाये सुरेन्द्र को सम्मानित कर चुके है।हिमाचल व हरियाणा के मुख्यमंत्रीयो द्वारा भी हॉकी,फुटबाल व एथेलेटिक्स के नेशनल कोच सुरेन्द्र कुमार को सम्मानित कर चुके है।सांप काटने का ईलाज मात्र फोन पर 5 तरह के बंधेज लगा कर करते है। 
जिस घर से सांप पकड़ते है,वंहा का पानी तक नही पीते है व न कुछ लेते है।यंहा तक की फोन की सूचना देने का बिल भी खुद देते है।सुरेन्द्र के परिवार में पत्नी सहित दो बेटियां व माता पिता है।आज उनकी एक बेटी भी सांप पकड़ने की कला में माहिर हो गई है व अपने पिता की तरह ही बड़े व विषैले सांप पकड़ कर पुण्य कार्य कर रही है।सुरेन्द्र कुमार ...9418472221 पर फोन करके सांप के काटने के इलाज के लिए सम्पर्क किया जा सकता है।
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कुनिहार रियासत का स्वर्णिम इतिहास


कुनिहार का शिव मंदिर तालाब में आज भी घोड़े की टापों और जूतों की आवाजें सुनाई देती हैं। लोगों को यकीन में रियासत के राजा आनंद देव सिंह आज भी अपनी रियासत की रक्षा के लिए यहां चक्कर लगाते हैं। आज भी स्वर्गीय राजा राय आनंद देव सिंह के घोड़े की टापों की आवाजें सुनाई दे जाती है। ऐसा लगता है मानो आज भी कोई देर रात को यहां के स्थानीय बाजार से पुरातन शिव मंदिर तालाब तक प्रहरी की तरह रखवाली कर रहा हो। यहां स्वर्गीय राजा राय आनंद देव सिंह अपनी रियासत की रक्षा कर रहे हैं। उनके वंशजो द्वारा उनकी स्मृति में एक मंदिर रूपी स्मारक भी बनाया गया है। बताया जाता है कि वर्ष 1799 में नालागढ़ एवं बाघल रियासत एक हो गए थे, दोनों रियासतों ने कुनिहार रियासत पर हमला करने की एक नाकाम कोशिश की थी।



शिवरात्रि के दिन  राजा राय आनंद देव सिंह पर धोखे से हमला करके उन्हें गोली मार दी गई थी। घायल होने के बावजूद भी स्वर्गीय राजा राय आनंद देव सिंह व उनके साथ चाकलू के मिया ने मिलकर दुश्मनों से काफी देर तक लोहा लिया लड़ते-लड़ते राजा राय आनंद देव सिंह घोड़े से एक जगह गिर गए व वीर गति को प्राप्त हुए। जंहां उनका शरीर गिरा उसी जगह उनका अंतिम दाह संस्कार किया गया। इतना ही नहीं राजा राय अमर देव सिंह की पत्नी भी उनके साथ ही सती हो गई थी। जिस स्थान पर राजा का अंतिम दाह संस्कार किया गया उस जगह को उस समय कुनिहार रियासत का देरा स्थान कहा जाता था। जो वर्तमान में लोक निर्माण विश्राम गृह कुनिहार के समीप है। वहीं उनके साथ चिता में सती हुई रानी की याद में आज भी पुरातन शिव मंदिर तालाब में सती मंदिर स्थापित है।



जिस दिन स्वर्गीय राजा राय अमर देव सिंह पर धोखे से हमला बोला गया वह दिन शिवरात्री का था कहा जाता है कि वर्ष 1799 से वर्ष 1947 तक कुनिहार रियासत में शिवरात्रि पर्व
मनाये जाने पर प्रतिबंध था। 10 जून 1948 को राजाओ के राज सरकार में विलय हो गए। उससे पहले कुनिहार रियासत की अपनी करंसी अपना कानून होता था व रियासत में प्रवेश करने के लिए कानूनी दस्तावेजों की आवश्यकता होती थी।



2900 के करीब आवादी वाले कुनिहार रियासत की सीमा करीब 36 किलो मीटर तक फेली हुई थी व सैनिको की सं2या करीब 15 00से अधिक रहती थी। इतना ही नही पहले एवं दूसरे विश्व युद्ध में भी कुनिहार रियासत के सैनिको ने लड़ाई में हिस्सा लिया था जिनके नाम आज भी इण्डिया गेट दिल्ली में अंकित है।
कुनिहार रियासत की 7 राजधानियां होती थी। जिसमे रायकोट, जाठीया देवी, पांव घाटी, सेरिघाट, कोटी, काणी व हाटकोट शामिल था। जिसमें दरबार लगा करता था। बैसाखी में मनाया जाने वाला लाहल मेला एवं बैहली में झोठो की लड़ाई मुख्य आकर्षण का केन्द्र माना जाता था। वहीं पुरातन शिव मंदिर तालाब कुनिहार के पंडित अरुण जोशी ने कहा कि तालाब में ही रानी का सती मंदिर है यंहा स्वाहगिन महिलाएं आकर अपने पति की लंबी आयु की कामना करती है। कुनिहार रियासत के 388 पीढ़ी के राणा संजय देव सिंह आज भी अपने पूर्वकी पुश्तैनी धरोहरों को संजोए हुए हैं। आज भी राज दरबार कुनिहार में कई पुरातन पांडुलिपियों, राजाओं के समय के हथियारों और दस्तावेजों को देखने कई राज्यों से लोग आते जाते रहते हैं।

खास बातचीत में उन्हने बताया कि यह सच है कि आज भी स्वर्गीय राजा राय अमर देव सिंह जी के घोड़ों के टापों की आवाजे कभी कभार स्थानीय बाजार से लेकर पुराने शिव मंदिर तालाब तक  लोगो को सुनाई दे जाती है। उन्होंने स्वय भी आवाजों को महसूस किया है। उन्होंने कहा कि जिस स्थान पर राजा राय आनंद देव सिंह का पार्टीव शरीर युद्ध के दौरान गिरा था उसी जगह उनका अंतिम संस्कार किया गया व उनके साथ रानी भी सती हो गई थी।

आज भी पुराने शिव मंदिर तालाब में सती मंदिर स्थापित है। पूर्वज राजा हरदेव सिंह के नाम पर आज भी कुनिहार के हरदेवपूरा में विद्यालय चल रहा है। जो वर्ष 1932 खोला गया था। इतना ही नहीं कुनिहार के स्थानीय विद्यालय को करीब 20 बीघा भूमि दान स्वरुप दी गई थी। उस समय कई पाकिस्तानी शर्णार्थियों को भी कुनिहार रियासत में बसाया गया। करीब 288 जमीनों की रजिस्ट्रियां करवाई गई। कई गांव बसाए गए थे।
© Dev Tanwar..
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