पारम्परिक पतल बनाने का कार्य करने वालों के अब बहुरेंगे दिन, हाथों हाथ बिक जाती है टोंर के पत्तों की पतलें

पारम्परिक पतल बनाने का कार्य करने वालों के अब बहुरेंगे दिन, हाथों हाथ बिक जाती है टोंर के पत्तों की पतलें

थर्मोकोल बैन होने से पारम्परिक कारोबार से जुड़े लोगों में नई ऊर्जा का संचार। 


प्रदेश में करीब दो दशक पहले ग्रामीण क्षेत्रों में होने वाले  किसी भी तरह के समारोह में टौर के पत्तों से बनी पत्तलों पर भोजन किया करते थे। हालांकि कई स्थानों पर आज भी इन्हीं पतलों पर भोजन परोसा जाता हैं,लेकिन अब इनका स्थान आज कागज की प्लेटों ने ले लिया है। पतलों के व्यवसाय से जहां कई परिवार जुड़े हुए थे,वंही यह पतले पर्यावरण के लिए नुक्सानदायक नहीं होती थी । इसके साथ ही पतलों पर भोजन करना शुभ व स्वच्छ माना जाता था ।

इस कारोबार से कई परिवार प्राकृतिक कच्चे माल से इसका निर्माण करते है। टोंर के पत्तों को बेचने वालों के लिए सस्ता और सुलभ कारोबार है। इससे कई परिवारों की रोजी-रोटी चली हुई है। सरकार के इस बैन से पत्तल बनाने वाले खुश तो हैं। मगर इस कारोबार से जुड़े लोगों का मानना है, कि बाजार में थर्मोकोल के अलावा कागज की पत्तलों और गिलासों पर भी प्रतिबंध लगना चाहिए। क्योंकि सभी प्रदूषण के वाहक हैं । प्रदेश में अधिकतर जगहों पर आज हर धाम में टोंर से बनी पत्तलों पर खाना परोसा जाता है, जबकि मंडयाली धाम तो पत्तलों के बिना अधूरी ही लगती है।हिमाचल के ग्रामीण परिवेश में आज भी पत्तलों में खाने का रिवाज कायम है।बहरहाल टौर के पत्तों से पत्तल बनाने वाले परिवारों में प्रदेश सरकार की घोषणा ने नई ऊर्जा भर दी है।उन्हें आस है कि थर्माेकोल से बनी प्लेट गिलास पर प्रतिबंध लगने से उनके कारोबार में तेजी आएगी।



कागज और थर्मोकोल से बनी पत्तलें जहां प्रदूषण फैलाती है। वहीं टौर के पत्तों से बनी पत्तलें पूरी तरह से बायोडिग्रेडेबल है । इन पर खाना खाने के बाद गोबर की खाद बनाने वाली जगह पर फेंक दें तो इनकी भी प्राकृतिक खाद बन जाती है । इसलिए यह प्रदूषण मुक्त है।थर्मोकोल बेन होने के बाद टौर से बनी पत्तल हाथों हाथ बिक रही है। अर्की विधान सभा क्षेत्र में पतल बनाने का कार्य पलोग पंचायत के दोची व मांजू,  देवरा पंचायत के कोखड़ी में व कुनिहार क्षेत्र के बणी, सेवरा व जाडली में होता है।उपमंडल के कोखड़ी गांव की वयोवृद्ध महिला जानकी देवी का कहना है कि इस महंगाई के दौर में  पतल बनाने में काफी समय लगने के साथ इस का सही मोल भी नही मिल पाता,क्योंकि आज के समय मे शादी विवाह या अन्य समारोह आधुनिकता की चकाचोंध में टोंर की पत्तलों को भूल ही गए थे। अब इस कारोबार से जुड़े लोगों के लिये एक आशा की किरण जाग गई है ।



समाज सेवी व पलोग पंचायत के प्रधान योगेश चौहान का कहना है कि यह निर्णय पर्यवारण हितैषी है अब लोंगो को इस व्यवसाय के साथ  जुड़ना चाहिए ।इस कारोबार से जंहा स्वरोजगार को बढ़ावा मिलेगा,वन्ही पर्यावरण भी दूषित नही होगा ।
वही डॉ नागेश गर्ग का मानना है कि थर्माकोल से बनी पतल व गिलास जलने पर पर्यावरण को प्रदूषित करते है, जबकि पतल से बनी प्लेट इस्तेमाल के बाद भी खाद के रूप में खेतों में इस्तेमाल हो सकती है।

@akshresh sharma
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